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Lockdown Chapter 5

जब से महामारी उेीेपर फेलनी शरू हुई है लोग उससे बचने के लिये तरह तरह के नुसखे Whats app, Facebook जैसी सोशियल साइट उपर भेजते है । शुरूआतमें धर्म स्थानो बंध हो गये, उनके लिये शोर मचाया, किसीने होस्पिटल और स्वास्थय कर्मीयोंको धन्यवाद दिया, थाली और ताली दोनों बजाई । साथ साथ सिलसिला शरू हुआ औषधियों का, पाणी के साथ बेंकीग सोडा उबालकर पीलो, शहद के साथ इतनी जडीबूट्टी मिला कर सेवन करो, गौमूत्र का सेवन करो इत्यादि । भारत भरमें इतने सारे ऊंटवैद्य प्रगट हो गये की लगता था की Corona 10 मिनिट में यहां से पलायन हो जायेगा !

साथ साथ झाडफूक वाले भी शरू हो गये ! उनको भी डर तो होगा ने की अपनी दुकान बंध हो जाये तो दूसरा कौनसा धंधा शरु करे ! कितनी महेनत से बेवफूको की जमात इकठ्ठी की अब वो चली जाये तो क्या होगा ? और वे लगे है बेवफूको को समजाने के लिये आप शांति रखो में यहाँ विधि करता हुं आपका कुछ नहि बिगडेगा । ऐसे लोग पूजा, हवन के विडियो, फोटो अपलोड करके मूर्ख चेलोको ज्यादा बेवफूक बनाने में लगे है । ऊंटवैद्य से लेकर धर्म के ठेकदार तक चिंतीत है, आने वाले दिनोमें अपना मुनाफा कायम रखने के लिये ।

सत्य तो यही है की सत्य हजम नहि होता है, और जूठ से काम बनता दिखाई देता नहि है । तीसरा बडा confuse है, करे तो क्या ?

England  के महान वैज्ञानिक Charles Darwin की एक किताब

“Descent of Man” 1871 में प्रसिद्ध हुई थी, उसमें एक वडी अहम बात कही गई है । “कम जानकारी अकसर लोगो में ज्यादा जानकारी की लालसा नहि उत्पन्न करती बलकी उनमें आत्मविश्‍वास बढाती है ।“

बहुत ही सटीक बात Darwin ने बताई, ऐसे message आनेके बाद हमारा दिमाग बंध हो जाता है और 90% लोग इसे पूर्ण सत्य मानकर उनमें श्रद्धा-विश्‍वास रख लेते है । इसी कारण धर्म के नाम पर धंधा करनेवालोकी दुकाने चलती है और ऊंटवैद्यकी औषधियों, कितने लोगोने ऊी का बोर्ड लगाकर महोल्ला क्लिनिक भी खोल रखे है । हमारी प्राचीन संस्कृति यह नहि कहती थी की ऐसे ही अंध विश्‍वासी बन जाओ । उपनिषद हमें शिखाता है की –

पूर्णमद: पूर्णमिद पूर्णात्पूर्णमुदच्यते ॥

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेयाव शिष्यते ॥1॥

अर्थात् पूर्ण बने, जो कुछ है वो पूर्ण ही है और अपूर्ण से काम नहि चलता । चाहे वो धर्म-परमात्मा हो या विज्ञान । संपूर्ण – पूर्ण न बन शको तो कोई बात नहि मगर हो शके इतना पूर्ण के समीप जानेका प्रयास तो करना पडेगा । यह तो हमे ही करना पडेगा । पडोशी 100% के समीप जानेका प्रयास करे तो फायदा हमें प्राप्त होगा या पडोशी को ? परीक्षामें 100 मार्क लाना काफी कठीन है मगर विद्यार्थीयों की सोच क्या है ? हो शके इतना पास जाने की, इसीलिये सब यह प्रयत्न करते है हम  100 के कितने समीप पहोंचे । सामान्य जीवन में ज्यादातर लोगोंने यह उम्मीद खो दी है, उत्साह ही नहि रहा विपरीत परिणाम स्वरुप मनुष्यका ज्यादातर हिस्सा बहाना साइन्टिफिक बन गया है । हमारे पास एक से बढकर एक बहाने मौजूद है ।

अब सोच लो Corona के लिये कौन सा बहाना स्वीकार्य होगा ? सही तो यही है की “सोच बदलो जीवन बदल जायेगा” यह काम आसान नहीं है । विज्ञान प्रवाहमें 12वी कक्षामें 100% के करीब कितने विद्यार्थी आते है, बहुत कम, फिरभी बहुत बडी संख्यामें जुडते है । समजना तो पडेगा जगतमें कभी भी कोई बहाना चला नहि है और कभी नहि चलेगा । देखलो दुनियाका सबसे नास्तिक देश चीन और सबसे चुस्त धार्मिक देश साउदी अरेबिया आज दोनो परेशान है । पूर्ण को समझना पडेगा चाहे वो परमात्मा हो, धर्म हो, धर्मगुरु हो या तो विज्ञान हो । अरे, नास्तिकता को भी पूर्ण रूप से समजने की आवश्यकता है । ज्ञान प्राप्ति के बिना जीवन में संतुष्टि नहि आयेगी, ना धन काम मैं आयेगा, न संपत्ति न sex काम मैं आयेगा।

अमेरिका-युरोप की सत्ता, धनका पावर देखलो, चीन का भोगवाद, साउदी अरेबिया की धन संपत्ति आज किस काम की ? सब के सब परेशान है । अर्धज्ञान, भोग और संपत्ति – सत्ता, विश्‍व गुरु देखलो शांति कीसके पास है ? हिमालय से आल्पस, रेगीस्तान से भव्यता सब चिंतीत है । अब दुनिया को नये तरीके से मंथन करना पडेगा । प्रकृति का हिस्सा पशु-पक्षी,नदी-वहेण, पेड-पौधे, रेगिस्तान से सागर अपना जीवन संगीत गुन गुनाता रहता है और मनुष्यको देखो – अकेला वो ही सदीयों से आलाप करने के बजाय विलाप करता रहा है ।

“जीवन संगीत” याद करो मीरांने गाया था, कबीरने गाया था, नरसिंह – जीवणजी, तुकाराम, नानक, सोक्रेटिस, प्लेटो, खलिल जीब्रान, लियो टोस्लरोय, अमीर खुसरो, मरते दम तक अनल हक्क अनल हक्क कहकर जीवन संगीत सुननेवाला मन्सुर हल्लास । कितने नाम गीनाउ ? जीवन संगीत अपना ही सुनना मगर हम क्या करते है – मुल्ला, महंतो, साधु बाबाओ  और लेभागु झाड फूंकने वालो का संगीत सुनते के लिये जाते है । अब तय करो हमारा जीवन संगीत कहा है…..अस्तु….

 

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