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Lockdown Chapter 3

21 दिनकी साधना का आज 3(तीसरा) दिन है । सब लोग दहेशत में है, मुल्ला से महंत, काबा से काशी और विज्ञान को जानने वाले भी इस दहेशत में शामिल है । आजकी स्थिति को देखकर दुनिया का Rational वर्ग काफी खुश है, धर्म-धार्मिकता, पोथियाँ की मजाक उडाते नजर आते है, आज उन Rational Society के बारे लिखना है ।

प्रथम सवाल यह है की क्या Rational व्यक्ति धार्मिक क्रिया कर्म करते है या नहि ? कब करते है ? क्युं करते है? यह प्रश्‍न धार्मिक या तो आध्यात्मिक व्यक्ति पूछ शकते है इस प्रश्‍न का जवाब कोईभी चुस्त Rational (चुस्त शब्द प्रयोग इसलिये किया हे की Rational व्यक्ति धार्मिक लोगोको चुस्त – अंधश्रद्धावान कहकर बुलाना ज्यादा पसंद करते है) बतायेगा तो उनकी जीभ तोतला जायेली, या तो यह जुठ बोलेगा या तो बहाना बनायेगा ।

मनुष्यो के लिये कहा जाता है की वह एक सामाजिक प्राणी है । अर्थात् मनुष्य कोई न कोई समूह में रहेता है । हम समुह का नामकरण भी करते है, यह समूह हिंदुओका, जैन, बौद्ध, शीख । अब मैं प्रश्‍न पूछता हुं की ठरींळेपरश्र का कोन सा समुह है ? जगत में कोई भी Rational का अपना अलायदा समुह (हम अपनी समज के लिये उनको “धर्म” कह शकते है) नहि है । जो जहां पेदा हुवा है वही का ही लेबल उनके शिर पर टीका रहता है ।

गुजरातके प्रसिद्ध लेखक और Rational रमणभाई पाठक जीवनभर ठरींळेपरश्र की वकालात करते दिखे, बहुत कुछ लिखा मगर उनकी मृत्यु के बात वो सारी क्रिया की गई जो एक चुस्त धार्मिक करता है । मैंने बहुत सारे Rational व्यक्तियों को यह प्रश्‍न पूछा है तो ज्यादातर लोगोने चुप रहना पसंद किया । मैं अकसर इन लोगो को इतना ही पूछता हुं की क्या आप अपने यहाँ शादी इत्यादि प्रसंग आते है तो कौनसी “विधि” करते हो ? अभी तक मुझे कोई संतोषकारक जवाब नहि प्राप्त हुवा। गुजरात के प्रसिद्ध IPS अधिकारी रमेशभाई सवाणीने खुल्म खुला कबूल किया की मैं अपने 85 साल के पिताश्री की इच्छा का सन्मान रखते हुए “जीवत क्रिया” करवाई, क्युं की इस उम्रमें में उनको Rational नही बना शकता ।

कबीर पहला जगत का सच्चा ठरींळेपरश्र था, उन्होने न मुल्लाओकी सुनी ना महंतो की । रामानंद स्वामी को गुरु किया, मगर रामानंद स्वामी के “राम” का स्वीकार नहि किया, उन्होने अपना “राम” कौन है यह बताया । उनकी परंपरामें गुजरातमें जीवणजी महाराज हुए । उन्होने उन कबीर विचारधारा अंतरगर्त जीवनजीने का सही प्रेकटीकल तरीका बताया । आज जीवणजी महाराजको मानने वाले, होम, हवन, कर्मकांड, मूर्हुत से पर है, शादी ब्याह जैसी सामाजिक क्रिया हो या तो मृत्यु, कोई मुल्ला-महंत, पूजारी, ब्राह्मण की कोई आवश्यकता ही खत्म कर दी । स्वतंत्र जीवन जीने का तरीका कबीर विचारधारा अंतरगर्त साकार करके दिया ।

धर्मका काम, मनुष्योमें एकता, संवादितता, भाईचारा, प्रेम, सहिष्णुता बरकरार रखने का है, साथ में मनुष्यो निर्भय होकर जीवन व्यतित कर शके इसलिये है । आज धर्मोने मनुष्योको तणावपूर्ण जीवन प्रदान किया है और मनुष्यो सदाय तणावरहित रहना चाहते है, सत्य यही है की तणावरहित जीवन जीनेके लिये कुछ मनुष्योने धर्मो को छोड दिया । परिणाम स्वरुप कुछ लोग स्वच्छंदी बन गये । बहुत कम लोग धर्म – ईश्‍वरका त्याग करके बौद्धिक बन गये – विचारक बन गये । आज ऐसे बौद्धिक विचारक वर्ग की संख्या सीमीत है । और स्वच्छंदीयों की संख्यो बहुत बडी है । ज्यादातर स्वच्छंदी लोग इश्‍वर का नाम लेकर धर्मका सहारा लेकर धार्मिक मुखोटा पहनकर अपनी दुकाने चलाने लगे और भोले लोगोको मुर्ख बनाकर लूटते फिरते है । वैसे  लोग न धार्मिक है, न वैचारिक है, वे सब पाखंडी है और धर्म का ठेका लेकर बैठ गये है ।

समजो और विचारो…………

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